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SHIVBHAKT - NAGA SADHU ..

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                    "नागा साधु" ! नाम सुनकर ही चौक गए ना ? यह नाम सुनकर कुछ लोगों के रोंगटे खड़े होतें हैं , तो कुछ लोग आशचर्य करते हैं , वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग जिज्ञासु होते हैं इनके बारेमें जानने और समझने को। आप इनमे से कौन हैं ? जो भी हो अगर नागाओं के बारेमें जानने में दिलचस्पी रखते हैं तो यह लेख आपको अच्छी खासी जानकारी दे सकता है।                   "शिव" जिनकी आराधना कई लोग करते हैं। कई लोग खुदको इनका महान भक्त बतातें हैं। पर गौर करने की बात तो यह है के केवल बोलने से कोई महान भक्त नहीं होता , महान शिवभक्त बनने के लिए कठोर जप - तप करना होता है , वैराग्य अपनाना होता है। भक्त तो कई प्रकार के होते हैं , पर हम बात कर रहें हैं उन ख़ास साधु भक्तों की जो बस शिव भक्ति में ही लीन रहतें हैं। हम नागा साधुओं को समझने का , इनके इतिहास को जानने का प्रयास कर रहें हैं। 'कौन हैं यह नागा साधु' ? 'कहाँ से आये हैं' ? 'कहाँ रहते हैं' ? 'क्या करते हैं' ? 'क्यों बनते हैं यह नागा साधु' ?     ...

SAMVED

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                      "वेदों  में वेद सामवेद"। "साम मतलब गान"। सामवेद एक ऐसा "हिन्दू धर्म" का ख़ास वेद है जिसमे लिखे मंत्रो को गाया जाता है। इस वेद के ज्ञान को गाकर सुनाया जाता है इसलिए यह सामवेद है।                       सामवेद में कुल "1875 ऋचायें हैं" ,जिनमे 75 से अतिरित्क शेष "ऋग्वेद" से ली गई हैं। इन मन्त्रों का गान "सोमयज्ञ" के समय किया जाता है। सामवेद में कुछ मन्त्र "अथर्ववेद और यजुर्वेद" के भी सम्मिलित हैं। सामवेद बाकि वेदों की तुलना में आकर की दॄष्टि से सबसे छोटा है पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। सामवेद की महत्ता इसलिए भी ज्यादा मानी जाती है क्यूंकि स्वयं "श्री कृष्ण" ने "श्रीमद भगवतगीता" में कहा है - "वेदानां सामवेदोअस्मि" यानी "श्री कृष्ण वेदो में सामवेद हैं"।                      वैसे तो जबसे संसार है तबसे ही वेद भी मौजूद हैं , पर "वेद व्यास जी" ने वेदो को लिपिबद्ध किया था और अपने ख़ास शिष्यों को...

MANIMAHESH - CHAMBA KAILASH!!!

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                                  हिमाचल की पहाड़ियों के बारेमें हर कोई जनता है पर बेहद ही कम लोग जानते हैं हिमाचल की चोटियों के पीछे छिपे इतिहास और उनसे जुड़ी कहानियों को। यहाँ हम ऐसे ही एक दिव्य चोटी "मणिमहेश" के बारेमे जानने और समझने का प्रयास करेंगे।                                    हिमचाल के 'चम्बा जिले' में स्थित एक मणिमहेश नामक दिव्य पहाड़ी हैं जिसपर स्वयं "महादेव और माँ गौरी" का निवास है ऐसा माना जाता है। मणिमहेश की ऊँचाई '5653 मीटर' मानी जाती है पर आज तक कोई भी शिखर तक नहीं पहुँचा है इसलिए सही ऊँचाई बताना मुमकिन नहीं।                                   मणिमहेश की यात्रा 'भरमौर गाँव' से शुरू होती है जो की 26km की मानी जाती है। यात्रा में कुछ दूर ही गाड़ी से सफर किया जा सकता है आगे का रास्ता प...

JAUHAR - EK DARAWANA SACH !!!

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              " जौहर " यह वो शब्द है जिसे एक बार सुनते ही कई लोगो की रूह काँप जाती है। जौहर वो है जो कई राजघरानों की अनसुनी चीखों को अपने अंदर कैद कर बैठ चूका है। आज हम इसके डरवाने पर राजपरिवार के गौरव करने जैसे किस्से को जानने का प्रयास करेंगे।                  जौहर वह प्रथा है जो पुराने वक़्त में भारत में राजपरिवारों , खासकर राजपूतों में स्त्रियों द्वारा निभाई जाती थी। जब राजपरिवार के योद्धाओं को हार निश्चित होगा ऐसा मालूम होता था तब वे मृत्युपर्यन्त युद्ध करने सज्ज हो जाते थे और वीरगति प्राप्त करने निकल पड़ते थे। तब उनकी स्त्रियाँ एक कुंड में आग लागकर उसमे कूद जाती थी और आत्मदाह कर लेती थी इसी को जौहर कहा गया है। चुकी दुश्मन राजा जितने के बाद हारे हुए राजपरिवार की स्त्रियों के साथ दुर्यव्यवहार करते थे तथा उनका हरण कर उन्हें जबरन अपनी रानी बना लिया करते थे। इसलिए स्त्रियाँ अपनी सुरक्षा हेतु और लाज बचाने के लिए जौहर करती थीं और वीरांगना कहलाती थीं।            ...

GOPAL JI - JO BANE "SAKSHI" !!

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                    'ओडिशा' के 'पूरी शहर' से '16 किलोमीटर' दूर स्थित एक 'मध्यकालीन युग' का मंदिर है जो "श्री कृष्ण और राधा" को समर्पित है। इस मंदिर की स्थापना के पीछे छिपी एक रोचक और भक्ति से पूर्ण कहानी सुनने और समझने को मिलती है। हम यहाँ इस मंदिर के बंद पन्नो में कैद इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे।                    पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार श्री कृष्ण के पड़पोते 'वज्र' ने कृष्ण की '16 मूर्तियाँ' एक ख़ास तरह के पथ्तर पर बनवाई थीं और इन सभी मूर्तियों को उन्होंने कृष्ण की याद में 'मथुरा' और उसके आस - पास के इलाको में स्थापित करवाई थी। इन मूर्तियों के नाम - "श्री हरिदेव ( गोवर्धन ) , श्री केशव देव ( मथुरा ) , श्री बलदेव ( बलदेओ ) , गोवर्धन जी ( वृन्दावन ) ,श्री नाथजी और गोपीनाथ जी ( जो पहले गोवर्धन पर थे अब राजस्थान में स्थित हैं ) , मदन मोहन और साक्षी गोपाल ( जो पहले वृन्दावन में थे ) , और बाकि ब्रज मंडल के 4 श्री कृष्ण थे"। इनमेसे गोपाल जी जो वृन्दावन में थे वह अब ...

ROHA JAGIR !

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                              " रोहा किला" जिसकी नीव 'सन 1510' के पास रखी गई थी जब 'कच्छ' के "राजा खेंगराजजी १स्ट" के छोटे भाई "साहेबजी" को '52 गाँवो' की जागीर दी गई थी। इस जागीर में राज्य करने वाले परिवार के वंशज "ठाकुर पुष्पेंदर सिंह" जो आज भुज में रहते हैं वह बताते हैं के साहेबजी के पोते "देवाजी" को "माता आशापुरा" ने सपने में दर्शन दिए और कुए से उनकी मूर्ति निकाल स्थापित करने का निर्देश दिया। तब देवाजी ने माता के कहे अनुसार मूर्ति निकाल कर मंदिर निर्माण कराया और उनकी स्थापना की और तभी देवाजी को उसी जगह किला निर्माण कराने का ख्याल आया फिर '1530' में किले का निर्माण शुरू हुआ। ठाकुर पुष्पेंद्र जी बताते हैं के रोहा जागीर में करीब 17 ,18 पीढ़ियों ने अपना जीवन-यापन किया है।                     रोहा किले का निर्माण वक़्त और जरुरत अनुसार कराया गया था। पहले बिच का हिस्सा बना फिर उसे संरक्षित करती दिवार को बनवाया गया। बादमे आबाद...

MEHERANGARH - KILA SURYA KA..

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                     " जोधपुर", "मारवाड़ साम्राज्य" की एक खूबसूरत और विशाल 'राजधानी' थी और आज राजस्थान का हिस्सा है। जोधपुर के 'ब्राह्मणों' ने अपने को अलग दिखने के लिए अपने घरो को नीला रंगवाना शुरू किया था जो आज भी इस शहर की पहचान बने हुए है।                     यहाँ कई शताब्दियों पहले 'राठौड़ वंश' के 'सूर्यवंशी राजपूतो' ने राज किया। राठौड़ो को अपना घर "कन्नौज", 'मोहम्मद गोरी' के हमले के बाद छोड़ना पड़ा था।  कन्नौज से राठौड़ पहले पश्चिम और कई सालो बाद मारवाड़ की धरती पर पहुंचे और अपना शासन स्थापित किया।                    "राव जोधा" ने कई सालो तक शासन करने के बाद अपने  लिए एक किले को स्थापित करने का विचार किया। बहुत ढूंढ़ने के बाद बीहड़ रेगिस्तान में एक विशाल लुप्त ज्वालामुखी का पहाड़ मिला जो की 400 फुट ऊँचा था और जिसका नाम "भाकड़ चिड़िया" यानि 'पक्षियों का पहाड़' था और इस पर पानी की कोई कमी नहीं थी। यह पहाड़ मंडोर के दक्षिण से 9 किलोमीटर...