JAUHAR - EK DARAWANA SACH !!!

              " जौहर " यह वो शब्द है जिसे एक बार सुनते ही कई लोगो की रूह काँप जाती है। जौहर वो है जो कई राजघरानों की अनसुनी चीखों को अपने अंदर कैद कर बैठ चूका है। आज हम इसके डरवाने पर राजपरिवार के गौरव करने जैसे किस्से को जानने का प्रयास करेंगे। 

                जौहर वह प्रथा है जो पुराने वक़्त में भारत में राजपरिवारों , खासकर राजपूतों में स्त्रियों द्वारा निभाई जाती थी। जब राजपरिवार के योद्धाओं को हार निश्चित होगा ऐसा मालूम होता था तब वे मृत्युपर्यन्त युद्ध करने सज्ज हो जाते थे और वीरगति प्राप्त करने निकल पड़ते थे। तब उनकी स्त्रियाँ एक कुंड में आग लागकर उसमे कूद जाती थी और आत्मदाह कर लेती थी इसी को जौहर कहा गया है। चुकी दुश्मन राजा जितने के बाद हारे हुए राजपरिवार की स्त्रियों के साथ दुर्यव्यवहार करते थे तथा उनका हरण कर उन्हें जबरन अपनी रानी बना लिया करते थे। इसलिए स्त्रियाँ अपनी सुरक्षा हेतु और लाज बचाने के लिए जौहर करती थीं और वीरांगना कहलाती थीं। 


               वैसे तो सदियों से पति की मृत्यु होने पर पत्नियाँ भी प्राणों का बलिदान देती आई हैं। पर जौहर प्रथा सबसे ज्यादा भारत में उस दौर में देखा गया है जब मुग़ल , यूनानी और बाहरी आक्रमणकारियों ने भारत पर हमला कर उस पर छल - कपट से अपना राज्य बनाने की कोशिश की थी। अधिकतर मुस्लिम आक्रमणकारी हमला कर जितने के बाद स्त्रियों को लूट कर उनका शीलभंग करते थे। यही कारन था की स्त्रियाँ हार निश्चित होने पर जौहर करने लगी थीं। 

               जौहर शब्द 'फ़ारसी' शब्द का 'अरबी' अनुवाद है। 'अरबी' में जौहर का अर्थ- "रत्न , ज्वेलरी और महत्व" से है। जौहर करने वाली स्त्रियाँ विशाल अग्निकुंड में सम्पूर्ण श्रृंगार कर आत्मदाह करती थीं। राजपूत घराने में जौहर प्रथा अति चर्चित रही है। राजपूत खुद भी डट कर लड़ते थे और अपने मान - सम्मान को संजोए रखते थे। उसी प्रकार जब बाहरी आक्रमणकारी घुसपैठिये बनने लगे और धीरे-धीरे कई राजघरानों को जीतकर अपना एक नया राज्य खड़ा करने लगे , तब मान - सम्मान की रक्षा के लिए राजपूत घरानों की स्त्रियों ने भी कसम खाई थी के वे जौहर क्रिया करेंगी परन्तु मान - सम्मान नहीं गवाएंगी। वाकई राजपूत घरानों की स्त्रियों के संघर्ष ने दुश्मनी सेना को एक वक़्त के लिए सोच में डाल दिया था क्यूंकि जो दुश्मनी सेना चाहती थीं वो राजपूत घरानों में नहीं हो सका था।    

               "राजा दाहिर" की पत्नी "रानी बाई" ने सर्वप्रथम जौहर किया था। माना जाता है के रानी बाई को यह प्रेरणा वेदों से मिली थीं। "यजुर्वेद और ऋग्वेद" में नारी को 'शेरनी , दुर्गा , धुरव , सुदुढ़' कहा है। वेदों में नारी को समझाया गया है के "अपनी शक्ति इस प्रकार पहचानों ताकि कोई समुद्र के समान उमड़ने वाला रिपो दल तुम्हें हानि न पहुँचा सके"। नारी को वेदों में "क्षत्रियों और ब्रहमणों की जन्मदात्री" कहा गया है। इन्ही बातों से रानी बाई ने जौहर कर वीरांगना होना तय किया ताकि शत्रु जीतकर भी पराजित हो और वो वीरांगना बन पति प्रेम को समर्पित हो सकें। रानी बाई से पहले किसी रानी ने जौहर किया हो यह प्रमाण नहीं मिला है। 


              इतिहास में वर्णित "राजस्थान का पहला एवं एकमात्र" "जल जौहर" "राजा हम्मीर देव" की "रानी रंगादेवी" ने 'रणथम्बोर दुर्ग' स्तिथ 'पद्मल तलाव' में कूदकर किया था। 'जैसलमेर , गागरोण , चितौड़गढ़' में किये गए जौहर को याद करते ही ज्यादातर लोगों की आँखे गर्व से नम होजाती हैं। "रानी पद्मावती" का जौहर तो आज भी समाज गर्व से याद करता है। 

              जौहर से ही जोड़कर सती प्रथा को देखा जाता है। पर सती प्रथा और जौहर में बहुत अंतर है। 'सती प्रथा' हिन्दू धर्म का हिस्सा ही नहीं है। हिन्दू धर्म के चारों वेद - "ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद  और अथर्ववेद" में भी स्त्री को सती करने की प्रथा का कहीं जिक्र नहीं है।  

               सती एक "संस्कृत शब्द" है जिसका अर्थ - "वो स्त्री जो सिर्फ अपने पति की है। वो पत्नी जो पवित्र है और उसका किसी गैर पुरुष से संबंध नहीं है"। एक दौर भारत में ऐसा भी आया जब पति की मृत्यु के बाद पत्नी को अपनी जान भी पति की चिता पर ही देनी होती थी। 'महाभारत काल' में भी सती प्रथा के प्रमाण मिलते हैं , जब "राजा पाण्डु" की दूसरी पत्नी "माद्री" ने उनकी मृत्यु पर राजा पाण्डु की चिता पर ही प्राण त्याग दिए थे। गुप्तकाल '510 ईस्वी' के दौरान सती प्रथा का पहला अभिलेखीय साक्ष्य मिलता है। जिसके अनुसार 'गोपराज' के वीरगति को प्राप्त होने पर उनकी पत्नी ने पति वियोग में सती होकर अपने प्राण त्यागे थे। इसके बाद सती प्रथा ने भारत में पैर पसारना शुरू किया था। कई स्त्रियाँ ख़ुशी - ख़ुशी  इस प्रथा को निभाती थीं , तो कुछ स्त्रियों को जबरन आग में झोंक दिया जाने लगा था। सती प्रथा की आड़ में स्त्रियों की चीखें छुपाई जाने लगी थीं। स्त्रियों की जिन्दगियाँ उनसे जबरन छीनी जाने लगी थीं। इस बात का साक्ष्य "मीरा बाई" के इतिहास में भी मिलता है जब उनके पति "राजा भोजराज" वीरगति को प्राप्त हुए थे तब मीरा बाई को भी उनके ससुराल वालों ने सती होने का आदेश दिया था पर मीरा बाई "श्री कृष्ण" को विवाह से पूर्व ही पति मान चुकी थीं इसलिए उन्होंने राजा भोजराज की मृत्यु पर सती होने से इंकार किया था। 


             जौहर एक बलिदान है जो मान - सम्मान के लिए किया जाता था , अपनी सुरक्षा हेतु किया जाता था। जौहर कर स्त्रियाँ वीरांगनाएँ कहलाती थीं। वहीं दूसरी ओर सती एक 'कुप्रथा' बनकर रह गई है। जिसे रोकने का प्रयास कई वर्षों से किया जा रहा है। 'आख़री जौहर' "सन 1753" में "राव बहादुर सिंह" के परिवार की महिलाओं ने बारूद में आग लगाकर खुद को उड़ा जौहर किया था। 


             जौहर हो या सती , है तो दोनों ही डरा देने वाले सच। दोनों ही प्रथाओं में स्त्रियों ने बलिदान दिया है। अपने सपने , इच्छाएं , जीवन , देह सबकुछ आग की लपटों को सौंप दिया है। वो सभी स्त्रियाँ वीरांगनाए जरूर कहलाती हैं , पर क्या कभी सोचा है के आख़री श्रृंगार कर , लाल चुनार ओढ़ कर , अपने हाथों के निशान दिवार पर छोड़ कर , अग्निकुंड की तरफ बड़ते हज़ारों स्त्रियों के क़दमों को तकलीफ कितनी होती होगी ? बेशक , जौहर करना स्त्रियों का सौभाग्य जरूर माना गया है पर यह एक ऐसा युद्ध रहा है जिसे वीरगति को प्राप्त करने वालें पुरुषों की स्त्रियों ने लड़ा है। 


         आज हमारे बिच जौहर इतिहास के पन्नों में बंद ज़रूर होगया है , पर इसके पीछे छिपा डरावना सच आज भी लोगों की निंदों को उड़ा देता है। अपने आप को आग की लपटों में झोंक देना इतना आसान भी नहीं हुआ होगा। जौहर क्या है यह फिर भी कई लोग जानते हैं पर कभी इसके इतिहास को याद कर अपनी रूह को उसकी सच्चाई बताने का प्रयास करिये। उन वीरांगनाओं का गौरव , सतियों का बलिदान याद कर आँखे नम न हो जाये तो  कहना !!!

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

RUKMINI - Vidarbha Rajkumari

ROHA JAGIR !

RANI RUDABAI - EK VIRANGANA..