SAMVED

                      "वेदों में वेद सामवेद"। "साम मतलब गान"। सामवेद एक ऐसा "हिन्दू धर्म" का ख़ास वेद है जिसमे लिखे मंत्रो को गाया जाता है। इस वेद के ज्ञान को गाकर सुनाया जाता है इसलिए यह सामवेद है। 


                     सामवेद में कुल "1875 ऋचायें हैं" ,जिनमे 75 से अतिरित्क शेष "ऋग्वेद" से ली गई हैं। इन मन्त्रों का गान "सोमयज्ञ" के समय किया जाता है। सामवेद में कुछ मन्त्र "अथर्ववेद और यजुर्वेद" के भी सम्मिलित हैं। सामवेद बाकि वेदों की तुलना में आकर की दॄष्टि से सबसे छोटा है पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। सामवेद की महत्ता इसलिए भी ज्यादा मानी जाती है क्यूंकि स्वयं "श्री कृष्ण" ने "श्रीमद भगवतगीता" में कहा है - "वेदानां सामवेदोअस्मि" यानी "श्री कृष्ण वेदो में सामवेद हैं"। 

                    वैसे तो जबसे संसार है तबसे ही वेद भी मौजूद हैं , पर "वेद व्यास जी" ने वेदो को लिपिबद्ध किया था और अपने ख़ास शिष्यों को इसका ज्ञान दिया था इसलिए वेद व्यास जी को रचैता बताया जाता है। वेद व्यास जी ने सामवेद का ज्ञान अपने शिष्य "जैमिनी" को दिया था फिर जैमिनी ने सामवेद का ज्ञान आगे बाटा था इसलिए "जैमिनी जी सामवेद के गुरु कहे जाते हैं"। 

                   सामवेद में 'इन्द्र , सूर्य , अग्नि , चंद्र' इत्यादि देवताओं को सोमयज्ञ में बुलाने के लिए मन्त्रों का उच्चारण होता है। 'इंद्रदेव' को 'देवों का राजा' , 'अग्नि देव' को 'देवताओं का मुख' , 'सूर्य देव' को 'अग्नि का स्तोत्र' कहकर सोमयज्ञ में आमंत्रित किया जाता है ताकि वे सभी देवता आकर आसन ग्रहण करें और आशीर्वाद प्रदान करें। 




                  आज के आधुनिक वैज्ञानिक जिन बातों की शोध करते हैं वे दरहसल सामवेद में मिलती है। जैसे 'इंद्र देव ने पृथ्वी को घुमाते हुए रखा है' , 'चंद्र के मंडल में सूर्य की किरणे विलीन होकर उसे प्रकाशित करती हैं'। जिस तरह मनोचिकित्सक एक व्यक्ति का इलाज करने के लिए उसे प्रकृति के पास रहने , गाना गाने की सलाह देते हैं।  वैसे ही सामवेद के कुछ छंदों में बताया है के प्रकृति ही सबकुछ है और इसके समीप रहकर इसका आदर करके ही मनुष्य ख़ुशी से जी सकते है। 

               "नारदीय शिक्षा ग्रंथ" में सामवेद की 'गायन पद्धति' का वर्णन मिलता है जिसे हम " सा - रे - गा - मा - पा - धा - नि - सा " के नामसे जानते हैं। "सा-षड्ज , रे-ऋषभ , गा-गांधार , म-मध्यम , प-पंचम , ध-धैवत , नि-निषाद"। इससे मालूम होता है के संगीत के स्वर भी सामवेद से लिए गए हैं। वेदों में सामवेद की 'शाखाएँ 1001' हैं जो की सबसे ज्यादा है। अलग-अलग शाखाओं में मंत्रो के अलग-अलग व्याखान , गाने का तरीका और मंत्रो के क्रम मिलते हैं। "अग्नि पुराण" में भी बताया गया है के सामवेद के विभिन्न मंत्रो के विधिवत जप से "रोगों से बचा" एवं मुक्त हुआ जा सकता है। सामवेद असल मे "ज्ञान, कर्म और भक्ति" इन तीनो योगो की 'त्रिवेणी' है। महान ऋषियों ने अलग-अलग मंत्रो को साथ में लाकर गायन किया और इसे विकसित किया। माना जाता है सारे "स्वर , ताल , लय , छंद , गति , मन्त्र , स्वर-चिकित्सा , राग नृत्य मुद्रा , भाव" आदि सामवेद ने ही इस संसार को दिए हैं। 


              सामवेद के मंत्रों का गायन करके महान ऋषिगण देवताओं को उनकी रक्षा और संसार की रक्षा करने हेतु बुलाते हैं। इतिहास देखें तो हमारे 4 वेदों में हर परेशानी का हल भी मिलता है और हमारे आस-पास जो कुछ भी मौजूद है वह कैसे है इसका विवरण भी मिलता है। यदि हम एक बार भी सामवेद को पढ़ने या समझने की कोशिश करते हैं तो हम सृष्टि को समझ पाते हैं। 

             आज की भाग-दौड़ भरी दुनिया में हमारे पास वक्त ही नहीं होता है के हम "वेदो और पुराणों" को पढ़ने और समझने की कोशिश भी करें। नाही हम अपनी नई पीढ़ी को हमारे शास्त्रों का ज्ञान देते है। रोजमर्या के काम और आधुनिक पढ़ाई, साथ ही साथ जलन और द्वेष जैसी चीजों के कारन हम शास्त्रों के लिए चाहते और ना चाहते हुए भी वक्त नहीं देते हैं। पर क्या इन महान वेदों , शस्त्रों के लिए कुछ ख़ास महत्वपूर्ण वक्त निकलना हमारे और हमारी नई पीढ़ी के लिए जरुरी नहीं ? एक बार जरूर सोचें और अपने वेदों के लिए वक्त निकालकर उन्हें समझें ताकि जीवन जीना भी आसान हो और हम प्रकृति का दुरूपयोग करने से भी बच सकें। 



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