SHIVBHAKT - NAGA SADHU ..

                   "नागा साधु" ! नाम सुनकर ही चौक गए ना ? यह नाम सुनकर कुछ लोगों के रोंगटे खड़े होतें हैं , तो कुछ लोग आशचर्य करते हैं , वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग जिज्ञासु होते हैं इनके बारेमें जानने और समझने को। आप इनमे से कौन हैं ? जो भी हो अगर नागाओं के बारेमें जानने में दिलचस्पी रखते हैं तो यह लेख आपको अच्छी खासी जानकारी दे सकता है। 


                 "शिव" जिनकी आराधना कई लोग करते हैं। कई लोग खुदको इनका महान भक्त बतातें हैं। पर गौर करने की बात तो यह है के केवल बोलने से कोई महान भक्त नहीं होता , महान शिवभक्त बनने के लिए कठोर जप - तप करना होता है , वैराग्य अपनाना होता है। भक्त तो कई प्रकार के होते हैं , पर हम बात कर रहें हैं उन ख़ास साधु भक्तों की जो बस शिव भक्ति में ही लीन रहतें हैं। हम नागा साधुओं को समझने का , इनके इतिहास को जानने का प्रयास कर रहें हैं। 'कौन हैं यह नागा साधु' ? 'कहाँ से आये हैं' ? 'कहाँ रहते हैं' ? 'क्या करते हैं' ? 'क्यों बनते हैं यह नागा साधु' ?


                "नागा" इसका मतलब वह साधु जो 'नग्न अवस्था' में रहकर भक्ति करे। साधुओं का खास इतिहास     "वेद व्यास जी" के वक्त से मिलता है। वेद व्यास जी ने संगठित रूप से " बनवासी संन्यासी " परंपरा शुरू की थी। फिर "शुखदेव" और धीरे - धीरे कई ऋषियों और संतों ने इस परंपरा को अपने तरीके से नया रूप दिया। "आदिगुरु शंकराचार्य" जिन्होनें '5 वीं शताब्दी' ईसा पूर्व में जन्म लिया , इन्होनें आज के सनातन धर्म की नीव रखी थी। शंकराचार्य ने "4 मठों" की स्थापना की - "गोवर्धन पीठ , शारदा पीठ , द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ"। 


               जब भारत में बाहरी आक्रमण बढ़ने लगा तब शंकराचार्य ने साधुओं को 'व्यायाम' कराने और 'हथियार' चलाना सिखाने पर ज़ोर दिया। नागा साधु इतनी कुशलता से हथियार चलाते हैं जैसे कोई महान योद्धा हो। जब बाहरी आक्रमण बड़ा तब कई राजा - महाराजाओं ने नागा साधुओं की मदद से विजय प्राप्त की थी। एक बार जब "श्री कृष्ण" की नगरी 'गोकुल' पर भी आक्रमणकारियों ने धावा बोलना चाहा था तब नागा साधुओं ने ही गोकुल की रक्षा अपनी युद्ध कला के बल पर की थी। आज भी नागा साधु 'तलवार , त्रिशूल , चिमटा' , इत्यादि हथियार साथ में लेकर चलते हैं। यह इनके योद्धा होने की पहचान को दर्शाता है। 

            सबसे पहले 'शंकराचार्य' ने "दसनामी संप्रदाय" का गठन किया था। फिर "अखाड़ों" की परंपरा शुरू हुई। 'सन 547 ईस्वी' में पहला "अखाड़ा आव्हान" अखाड़ा बना था। आज तक़रीबन '13 अखाड़े' मौजूद हैं , इनमें से '7 अखाड़े' ही नागा साधु बनाते हैं - "जूना , महानिर्वाणी , निरंजनी , अटल , अग्नि , आनंद और आव्हान अखाड़ा"। 


           नागा साधु बनने के लिए जरुरी है 'कुंभ' होना। भारत में होने वाले '4 कुंभो' में ही नागा साधु बना जा सकता है। किस कुंभ में नागा साधु बने हैं इसकी पहचान हेतु सभी कुंभ स्थलों में बनने वालें साधुओं को एक नाम दिया जाता है। जैसे "प्रयागराज में नागा" , "उज्जैन में खुनी नागा" , "हरिद्वार में बर्फानी नागा" , तथा "नासिक में खिचडिया नागा" कहा जाता है। नागा साधु बनने के लिए '12 साल' तक लग जाते हैं। इन 12 सालों में कई तरह की मेहनत करनी होती है। अखाड़े भी आसानी से नागा साधु नहीं बनाते हैं। कोई भी व्यक्ति अगर नागा साधु बनने आते हैं तो अखाड़ा पहले उनकी जाँच - पड़ताल करता है। वह क्यों बनना चाहते हैं नागा ? वह नागा बनने योग्य हैं या नहीं ? यह सब परखा जाता है। नागा बनने की प्रक्रिया कुंभ से ही आरम्भ होती है और अंतिम प्रण भी कुंभ में ही लिया जाता है।  

           नागा बनने के लिए कठोर साधना करनी होती है। सबसे पहले परिवार का त्याग , वस्त्र का त्याग , अपनी वासनाओं पर नियंत्रण रखना होता है। ज़मीन पर सोना होता है , 24 घंटो में केवल एक बार ही भोजन करना होता है। योद्ध कला सीखनी होती है , आध्यात्मिक शक्ति के साथ - साथ शारीरिक बल का निर्माण करना होता है। इतना ही नहीं अपना खुदका "पिंडदान" करना होता है। पिंडदान करने से यह साबित होता है के वह व्यक्ति संसार और परिवार के लिए मर चुके हैं और फिर वह नागा साधु बनते हैं। कई जगहों पर महिलाएँ भी नागा साधु बनती हैं पर ज्यादातर इनमेसे विदेशी मूल की नागरिक होती हैं पर यह एक गेरवा वस्त्र धारण करती हैं। 


         सबसे बड़ा सवाल है के नागा साधु कपड़े क्यों नहीं पहनते ? जब कोई व्यक्ति नागा साधु बनने की प्रक्रिया में शामिल होता है तो उन्हें अपनी सबसे ज़रूरी चीजों का त्याग करना होता है। कपड़े हमारी ज़रूरत है इसलिए सबसे पहले उन्हीं का त्याग किया जाता है। नागा साधुओं के लिए आसमान ही कपड़ा होता है। नागा साधु "शिव" की आराधना करते हैं , इसलिए यह शिव की ही तरह 'भस्म का श्रृंगार' करते हैं। लम्बी 'जटा' रखते हैं , 'रुद्राक्ष' धारण करते हैं। माथे पर एक ख़ास 'तिलक' लगाते हैं , 'गेंदे' के फूलों की माला पेहेनते हैं। रोज सुबह उठकर खुदको भस्म से रमते हैं , दिन भर साधना , योग इत्यादि चीजे करके बस शामको एक बार भोजन करते हैं। भोजन भी भिक्षा माँगकर खाना होता है और अगर '7 घरों' में भिक्षा न मिले तो खाली पेट ही सोना होता है। भोजन जो भी हो , जैसा भी हो, पसंद - नापसंद का त्याग करके ही खाना होता है। जो नए नागा साधु होते हैं वह एक 'गेरवा वस्त्र' धारण करते हैं बादमे उसका भी त्याग करते हैं। 

         नागा साधु जन - जीवन से दूर रहते हैं। केवल कुंभ के वक्त ही इनके दर्शन होपाते हैं। नागा साधुओं के योग क्रियाओं में "हठ योग" भी शामिल है। कुंभ में कई ऐसे साधु दिखाई पड़ते हैं जो हठ योग में लीन होते हैं। नागा साधु वैसे तो शांत होते हैं पर अगर कोई जबरदस्ती इन्हे परेशान करता है तो उसे इनके गुस्से का सामना करना पड़ता है। सेना भी नागा साधुओं का लोहा मानती है इसलिए इन्हें एक ख़ास स्थान दिया जाता है। नागा साधु "अखाड़ों , मंदिरों , और हिमालय की गुफाओं" में रहते हैं। केवल कुम्भ के वक़्त ही नज़र आते हैं। माना जाता है इनके पास ख़ास तरह की शक्तियाँ भी होती हैं जिन्हें यह 'साधना , भक्ति और ज्ञान' से अर्जित करते हैं। 


         कई बार 'नागा' और 'अघोरी' साधुओं को एक माना जाता है क्योंकि यह दोनों ही शिवभक्त होते हैं , भस्म का श्रृंगार करते है। पर अघोरी वह होते हैं जो 'शमशान' में रहते हैं , 'मास' भी खाते हैं और 'मृत' को भी जीवित करदें ऐसा ज्ञान भी रखते हैं। इसलिए नागाओं और अघोरी साधुओं में अंतर होता है। नागा साधु 'चिलम' का सेवन भी करते हैं। 


         नागा साधु बनना कोई आसान बात नहीं है। गृहस्थ जीवन शैली से भी कठोर होता है इनका जीवन। यह ऐसे महान साधु होते हैं जो शिव से ही उत्पन्न होते हैं , शिव को भजते हैं , और शिव में ही समा जाते हैं। पर हम इन्हें आश्चर्यजनक नज़रों से क्यों देखते हैं ? यह तो शिवभक्त होते हैं और शिव को हम सब मानते हैं फिर इन नागा साधुओं को भक्ति की नज़रों से क्यों नहीं देखा जा सकता ? क्यों हम जाने - अनजाने में इनका अपमान कर बैठतें  हैं ? अपनी जरूरतों को त्यागकर भक्ति में रमना , समाज कल्याण के लिए शास्त्र के साथ शस्त्र का ज्ञान भी अर्जित करना कोई मज़ाक तो नहीं होता है। फिर भी हम ऐसे भक्तों को वह सम्मान नहीं देते जो ज़रूरी होता है। 


          नागा साधुओं का इतिहास तो बरसों पुराना है , आज भी सैकड़ों नागा साधु मौजूद हैं। पर इनके इतिहास के पीछे छिपी दिलचस्प जानकारी पन्नों में लुप्त जरूर होती जा रही है। क्या हमारा फर्ज़ नहीं इनके इतिहास को लुप्त होने से पहले रोकने का ? सिर्फ आधुनिक युग पर नहीं अपने महान इतिहास पर भी ध्यान दें , क्योंकि इतिहास नहीं होता , ऐसे महान भक्त नहीं होते तो शायद हम सबका भी अस्तित्व नहीं होता। इतना ही नहीं अगली बार जब कभी नागा साधुओं के दर्शन हो तो आश्चर्यजनक नज़रों से नहीं सम्मान की नज़रों से दर्शन करना। इनका दर्शन होना कोई खेल नहीं। 


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