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JAUHAR - EK DARAWANA SACH !!!

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              " जौहर " यह वो शब्द है जिसे एक बार सुनते ही कई लोगो की रूह काँप जाती है। जौहर वो है जो कई राजघरानों की अनसुनी चीखों को अपने अंदर कैद कर बैठ चूका है। आज हम इसके डरवाने पर राजपरिवार के गौरव करने जैसे किस्से को जानने का प्रयास करेंगे।                  जौहर वह प्रथा है जो पुराने वक़्त में भारत में राजपरिवारों , खासकर राजपूतों में स्त्रियों द्वारा निभाई जाती थी। जब राजपरिवार के योद्धाओं को हार निश्चित होगा ऐसा मालूम होता था तब वे मृत्युपर्यन्त युद्ध करने सज्ज हो जाते थे और वीरगति प्राप्त करने निकल पड़ते थे। तब उनकी स्त्रियाँ एक कुंड में आग लागकर उसमे कूद जाती थी और आत्मदाह कर लेती थी इसी को जौहर कहा गया है। चुकी दुश्मन राजा जितने के बाद हारे हुए राजपरिवार की स्त्रियों के साथ दुर्यव्यवहार करते थे तथा उनका हरण कर उन्हें जबरन अपनी रानी बना लिया करते थे। इसलिए स्त्रियाँ अपनी सुरक्षा हेतु और लाज बचाने के लिए जौहर करती थीं और वीरांगना कहलाती थीं।            ...

GOPAL JI - JO BANE "SAKSHI" !!

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                    'ओडिशा' के 'पूरी शहर' से '16 किलोमीटर' दूर स्थित एक 'मध्यकालीन युग' का मंदिर है जो "श्री कृष्ण और राधा" को समर्पित है। इस मंदिर की स्थापना के पीछे छिपी एक रोचक और भक्ति से पूर्ण कहानी सुनने और समझने को मिलती है। हम यहाँ इस मंदिर के बंद पन्नो में कैद इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे।                    पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार श्री कृष्ण के पड़पोते 'वज्र' ने कृष्ण की '16 मूर्तियाँ' एक ख़ास तरह के पथ्तर पर बनवाई थीं और इन सभी मूर्तियों को उन्होंने कृष्ण की याद में 'मथुरा' और उसके आस - पास के इलाको में स्थापित करवाई थी। इन मूर्तियों के नाम - "श्री हरिदेव ( गोवर्धन ) , श्री केशव देव ( मथुरा ) , श्री बलदेव ( बलदेओ ) , गोवर्धन जी ( वृन्दावन ) ,श्री नाथजी और गोपीनाथ जी ( जो पहले गोवर्धन पर थे अब राजस्थान में स्थित हैं ) , मदन मोहन और साक्षी गोपाल ( जो पहले वृन्दावन में थे ) , और बाकि ब्रज मंडल के 4 श्री कृष्ण थे"। इनमेसे गोपाल जी जो वृन्दावन में थे वह अब ...

ROHA JAGIR !

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                              " रोहा किला" जिसकी नीव 'सन 1510' के पास रखी गई थी जब 'कच्छ' के "राजा खेंगराजजी १स्ट" के छोटे भाई "साहेबजी" को '52 गाँवो' की जागीर दी गई थी। इस जागीर में राज्य करने वाले परिवार के वंशज "ठाकुर पुष्पेंदर सिंह" जो आज भुज में रहते हैं वह बताते हैं के साहेबजी के पोते "देवाजी" को "माता आशापुरा" ने सपने में दर्शन दिए और कुए से उनकी मूर्ति निकाल स्थापित करने का निर्देश दिया। तब देवाजी ने माता के कहे अनुसार मूर्ति निकाल कर मंदिर निर्माण कराया और उनकी स्थापना की और तभी देवाजी को उसी जगह किला निर्माण कराने का ख्याल आया फिर '1530' में किले का निर्माण शुरू हुआ। ठाकुर पुष्पेंद्र जी बताते हैं के रोहा जागीर में करीब 17 ,18 पीढ़ियों ने अपना जीवन-यापन किया है।                     रोहा किले का निर्माण वक़्त और जरुरत अनुसार कराया गया था। पहले बिच का हिस्सा बना फिर उसे संरक्षित करती दिवार को बनवाया गया। बादमे आबाद...

MEHERANGARH - KILA SURYA KA..

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                     " जोधपुर", "मारवाड़ साम्राज्य" की एक खूबसूरत और विशाल 'राजधानी' थी और आज राजस्थान का हिस्सा है। जोधपुर के 'ब्राह्मणों' ने अपने को अलग दिखने के लिए अपने घरो को नीला रंगवाना शुरू किया था जो आज भी इस शहर की पहचान बने हुए है।                     यहाँ कई शताब्दियों पहले 'राठौड़ वंश' के 'सूर्यवंशी राजपूतो' ने राज किया। राठौड़ो को अपना घर "कन्नौज", 'मोहम्मद गोरी' के हमले के बाद छोड़ना पड़ा था।  कन्नौज से राठौड़ पहले पश्चिम और कई सालो बाद मारवाड़ की धरती पर पहुंचे और अपना शासन स्थापित किया।                    "राव जोधा" ने कई सालो तक शासन करने के बाद अपने  लिए एक किले को स्थापित करने का विचार किया। बहुत ढूंढ़ने के बाद बीहड़ रेगिस्तान में एक विशाल लुप्त ज्वालामुखी का पहाड़ मिला जो की 400 फुट ऊँचा था और जिसका नाम "भाकड़ चिड़िया" यानि 'पक्षियों का पहाड़' था और इस पर पानी की कोई कमी नहीं थी। यह पहाड़ मंडोर के दक्षिण से 9 किलोमीटर...

RUKMINI - Vidarbha Rajkumari

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                  द्वापर युग में 'विदर्भ' के "भोजवंशी राजा भीष्मक" थे जिनकी राजधानी 'कुंडिनपुर नगरी' थी। राजा  भीष्मक अपने अस्त्रकौशल के बल पर बैशिक देशो पर आधिपत्य करने में समर्थ थे। राजा भीष्मक "मगधराज जरासंघ" के ख़ास मित्र थे। राजा भीष्मक के ५ पुत्र- "रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस, रुक्ममाली" थे। और १ पुत्री "राजकुमारी रुक्मिणी" थीं।                  राजकुमारी रुक्मिणी का जन्म 'वैशाख एकादशी' को हुआ था। राजकुमारी के जन्म के बाद से विदर्भ का वैभव कई गुना बढ़ने लगा। प्रजा राजकुमारी को 'लक्ष्मी स्वरुप' मानती थी। कई पौराणिक साहित्यो में उन्हें लक्ष्मी अवतार भी माना गया है। द्वापर युग में "श्री कृष्ण" का भी जन्म हुआ था जिन्हें लोग 'विष्णु का अवतार' मानते थे। कृष्ण ने "द्वारका" नामक नगरी को बहुत कम समय में परिश्रम कर बसाया था। श्री कृष्ण के चर्चे हर तरफ होते थे। ऋषि-मुनि, ज्ञानी जन जहाँ भी जाते उनके गुणगान गाते थे।                  ब...

RANI RUDABAI - EK VIRANGANA..

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            15 वी शताब्दी का वो दौर था, हर तरफ तप्ति बंजर धरती और पिने को पानी की एक-एक बून्द की तड़प गुजरात के हर इंसान को झंझोड़ कर रख देती थी। ना तो इंद्र का आशीर्वाद,नाही कुदरत का रहम गुजरात वासियो को प्राप्त था। हर तरफ एक अनकही सी खामोशी और पानी की एक झलक को तड़पती आँखे थी।             अहमदावाद के पास 'अडालज' नाम एक गाँव है जो की प्राचीन काल में 'दांडई देश' के नाम से जाना जाता था। वहाँ के शासक "राजा वीरसिंह वाघेला"अपनी प्रजा के हित का बेहद ख़याल रखते थे। उन्होंने "अडालज वाव"  (बावड़ी) का निर्माण कराने का फैसला लिया ताकि प्रजा को पानी की कमी से बचाया जा सके। पर दुर्भाग्य था राजा साहब का, एक दिन "महमूद बेगड़ा" जो की मुस्लिम शासक थे उन्होंने राजा वीरसिंह के राज्य पर हमला किया जिसमे राजा वीरसिंह वीरगति को प्राप्त हुए। अब अडालज पर महमूद बेगड़ा की सल्तनत स्थापित हुई।             राजा वीरसिंह वाघेला की "रानी रुदाबाई" खूबसूरती की अद्भुत मिसाल थीं,  और इसी कारन वो मेहमू...

MEERA KA EK TARFA PREM....

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            याद आज '1498' की करते है,'मेरता' शासक 'राव दूदा जी' के राजघराने में जन्म जब एक खूबसूरत राजकुमारी ने लिया। दादा दूदा जी ने नाम उनको 'मीरा' दिया,जिसका अर्थ स्वच्छ और तृप्त जलकुंड था। दिखने में वो खूबसूरत जैसे चाँद,बोली जैसे माँ सरस्वती खुद हो गले में विराजमान।            जब भजन गाती मीरा तो मानो खुद स्वर्ग से देवता उन्हें सुनने के लिए मेरता की धरती पर उतरते हों।   जात-पात की जिसे कदर नहीं थी,वही मीरा दादाजी के छोटे बेटे 'रतन सिंह' की बेटी थी। पड़ोस में शादी देख एक दिन मीरा अपनी माँ 'वीर कुमारी' से पूछ बैठी- "माँ मेरा दूल्हा कौन है? विवाह कहाँ होगा मेरा?" माँ ने मीरा का हटी स्वभाव उस दिन जाना जब अपने दूल्हे के बारेमें जानने के लिए मीरा बार-बार एक ही सवाल दोहराने लगी। माँ ने आखिर में तंग आकर श्री कृष्ण मूर्ति की ओर इशारा कर मीरा को उनका पति बता दिया। उस दिन से मीरा तो मानो सुध-बुध खो केवल कृष्ण के ही साथ रहने लगी जैसे अपना सबकुछ मीरा ने कृष्ण को ही समर्पित कर दिया हो।   ...