SURYA ..... ek adbhut grah ....

                                       सूर्यदेव !!! आखिर कौन ही होगा हम सब में से जो सूर्यदेव को नहीं जानता होगा ? रोज की शुरुआत ही सूर्यदेव की दिव्य रौशनी से होती है , लेकिन फिर भी सूर्यदेव और सूर्य लोक से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो हम सब नहीं जानते हैं या शायद जानने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। तो चलिए आज साथ मिलकर सूर्यदेव और उनके गृह की कुछ रोचक बातें जानने का प्रयास करते हैं। 

                                     सूर्य गृह के स्वामी ऋषि कश्यप और माता अदिति के पुत्र सूर्यदेव हैं। सूर्य गृह सभी ग्रहों के स्वामी है और प्रथम गृह है। सूर्यदेव का नाम रवि होने के कारन वे रविवार के स्वामी हैं। वेदों में वर्णन मिलता है के सूर्य जगत अथवा संसार की आत्मा हैं। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्यदेव की स्तुति मिलती है। प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों ने सूर्यदेव को प्रसन्न करने हेतु कई कठोर यज्ञ कर उनमे आहुतियां दी है। 


                                     अब बात करते हैं आखिर कैसे प्रकट हुए सूर्यदेव ! सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रम्हा जी के मुख से "ॐ" प्रकट हुआ था , वही सूर्य का "प्रारंभिक सूक्ष्म" स्वरुप था। इसके बाद " भू : भुव तथा स्व " शब्द की उत्पत्ति हुई।  इन तीनो शब्दों को पिंड रूप में " ॐ " में विलीन होने का अवसर मिला और जिसके कारन सूर्य को "स्थूल रूप" मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने के कारन सूर्य को "आदित्य" नाम मिला। 

                                     सूर्यदेव की कथाएं कई पुराणों में मिलती हैं , जैसे भविष्य पुराण , मत्स्य पुराण , पद्म पुराण , ब्रह्म पुराण , मार्कण्डेय पुराण , इतियादी। उपनिषदों में सूर्यदेव के तीन रूप माने गए हैं - १. निर्गुण , निराकार २. सगुन , निराकार ३. सगुन , साकार। उपनिषदों में सूर्य के स्वरुप का मार्मिक वर्णन है : " जो यह भगवन सूर्य आकाश में तपते हैं उनकी उपासना करनी चाहिए। " भविष्य पुराण के ब्रम्हा पर्व ( अध्याय ४८ / २१- २८ ) में भगवान् वासुदेव ने साम्ब को उनकी जिज्ञासा का उत्तर देते हुए कहा है - " सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। वे इस समस्त जगत के नेत्र हैं। इन्ही से दिन का सृजन होता है। "

                                      सूर्यदेव का जन्म कलिंग देश में कश्यप गोत्र में और ब्राम्हण जाती में हुआ। सूर्यदेव ने अपनी माता की आज्ञा पर अपने बाकि देव भाइयों की असुरों से रक्षा करि थी। भगवान् सूर्य की आराधन कर माता अदिति ने सूर्यदेव को पुत्र रूप में पाया था। सूर्यदेव की २ पत्नियां ( संज्ञा और छाया ) हैं। संज्ञा से वैवस्वतमनु , यम , यमुना , अश्विनी कुमार और रैवन्त तथा छाया से शनि , तपती , विष्टि और सावर्णिमनु का जन्म हुआ था। 


                                       सूर्यदेव के रथ की चर्चा यदि करें तो केवल एक पहिये का रथ सात अलग - अलग रंगों के तेजस्वी घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। उनके सारथि अरुण के पैर नहीं है। निरालम्ब मार्ग , घोड़ों की लगाम की जगह सांपो की रस्सी ऐसा अद्भुत रथ है सूर्यदेव का ! श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णन हुआ है के सूर्यदेव के रथ का एक चक्र संवत्सर कहलाता है। इसमें मास (महीना) रूपी बारह आरे होते हैं , ६ नेमिषा ऋतु रूप में है, तथा नाभि रूप में तीन चौमासे हैं। इस दिव्य रथ की धुरी का एक सिरा मेरुपर्वत की चोटि पर है वहीँ दूसरा सिरा मानसरोवर पर्वत पर है।  

                                      सूर्यदेव को प्रसन्न यदि करना हो तो उसके लिए शास्त्रों में वर्णन मिलता है के उन्हें गुड़ की बलि से , गूगल धुप से , रक्त चन्दन से , अर्क की समिधा से , कमल पुष्प से प्रसन्न किया जा सकता है। सिंह राशि के स्वामी हैं सूर्यदेव। इनकी महादशा ६ वर्ष की होती है।  गुड़ , गाय , ताम्बा , सोना ,एवं लाल वस्र सूर्यदेव को अति प्रिय है। सूर्यदेव का प्रिय रत्न माणिक्य है। सूर्य की धातु सोना तथा ताम्बा है। सूर्य की जप संख्या ७००० है। बीज मंत्र - "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय: नम: " है। सामान्य मंत्र " ॐ घृणि सूर्याय नमः " है। 

                                   हम अक्सर इतने व्यस्त होतें हैं के हम सोच भी नहीं पाते हैं के आखिर हमारा ब्रम्हांड कितना बड़ा है और उसमे कितने दिव्य गृह तथा उपग्रह मौजूद है। यदि सूर्योदय ही न हो तो हमारा जीवन ही व्यर्थ है लेकिन फिर भी हम सूर्यदेव तथा उनके गृह को जानने का प्रयास नहीं करते। आज के समय में ऐसे लोग बेहद ही कम हैं जिन्हे शास्त्रों में रूचि हो। लेकिन यदि हम समय निकालें तो हम इतिहास के बंद पन्नो में छिपे कई प्राचीन और अकल्पनीय तत्थ्यों को जान सकते है। सूर्यदेव और उनके गृह का ये इतिहास सचमें अँधेरे में घिरे हमारे मन को एक तेज रौशनी से भर देगा। 



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धन्यवाद ।  


                                      

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