GAGRON KILA - उत्तर भारत में गागरोन एकलौता जलदुर्ग !!!

                     

                      'राजस्थान' , अपने राजपुताना इतिहास और विशाल किलों के लिए प्रसिद्ध है। पर क्या आप जानते हैं यहाँ कुछ ऐसे ख़ास किले आज भी मौजूद हैं जिनकी ओर आज कोई मूड कर भी देखता है तो उसे ताज्जुब होता है। आज का राजस्थान पहले के कई संपन्न राज्यों का समूह है। आज हम ऐसे ही प्रसिद्ध स्थान 'हड़ौती' के 'गागरोन किले' के लुप्त इतिहास को जानने की कोशिश करेंगे।
                       गागरोन किले का निर्माण 'डोड महाराज बीजलदेव' ने '12 वी सदी' में करवाया था। यहाँ 300 सालों तक 'खींची राजाओं' का राज्य था। गागरोन किला '14 युद्ध और 2 जौहर' का साक्ष्या बना। उत्तर भारत में गागरोन एकलौता ऐसा किला है जो 'जर्लदुर्ग' है। इस किले के 3 परकोटे हैं आमतौर पर किलों के 2 ही परकोटे होते हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है के इस किले की नीव ही नहीं है। किले की बुर्ज पहाड़ियों से मिली हुई है। किले के तीनों ओर गहरा पानी बहता है। दुर्गम पथ , चौतरफ़ा विशाल खाई , मजबूत चट्टानों पर तीनों परकोटो का बनाया गया था। किले का निर्माण पर्वतमालाओं के आकार में कराया गया था ताकि शत्रु को दूरसे किला समझ न आये।  किले में बारूद खाना , सिलेहखाना , राजा अचलदास का महल , मधुसूदन मंदिर , द्वारकाधीश का देवालय , आशा पाला का मंदिर, मदन मोहन मंदिर , ख़्वाजा साहब की दरगाह , बुलंद दरवाजा , दरीखाना , रंग महल , शीश महल , बाहर संत पीपा की छतरी इत्यादि विशेष स्थान मौजूद है।

 

                   गागरोन का किले बेहद विचलित करने वाला है। 'राजा भोज' के पुत्र पराक्रमी 'अचलदास खींची' थे। इन्ही के शासनकाल में पहला जौहर हुआ था। इनकी पटरानी 'लाला मेवाड़ी मेवाड़ के महाराणा कुम्भा' की बहन थी। 'ई. स. 1423' में 'मांडू के सुलतान अलपखाँ गोरी' ने हमला कर दिया। इस हमले में अचलदास वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी रानियों ने जौहर किया। 

                   गागरोन पर 'डोडा राजाओं' की साम्राज्य के बाद खींची राजाओं का साम्राज्य स्थापित हुआ था इसके पीछे इस वंशों के बिच की पारिवारिक कलह को कारन माना जाता है। 'खटखट के खीचियों' की बहन की शादी एक डोडा राजा से हुई थी। एक बार जब राजा रानी चौसड़ खेल रहे थे जब सार को राजा ने मारा और कहा के मैंने एक खींची को मार दिया इस पर रानी नाराज हो गई और उन्होंने उत्तर में राजा को कहा के खींची इतनी आसानी से नहीं मरते बादमें राजा रानी के मध्य विवाद बड़ गया और रानी ने अपने भाई को अपने पति से 'द्वंद युद्ध' करने के लिए बुलाया। रानी के भाई ने मना किया के जियाजी से युद्ध संभव नहीं ! पर बहन 'गंगाबाई' ने भाई को यह दलील दी के यह खीचियों के इज़्जत का सवाल है। फिर युद्ध में डोडा राजा की मृत्यु हुई और उनकी रानी गंगाबाई गागरोन में सती हुई। उसके बाद खींची इस किले में आए और अपनी बहन की याद में इस किले का नाम 'गंगारवण' रखा जो वक्त अनुसार इसका नाम 'गागरोन' किला हुआ। 

                  'ई. स. 1444' में मांडू के सुलतान महमूद खिलजी प्रथम और अचलदास खींची के पुत्र 'पाल्हणसी' के मध्य में युद्ध हुआ था। इस युद्ध में खीचियों की पराजय हुई और किले में वीरांगनाओं ने जौहर किया। यह गागरोन का दूसरा जौहर था। 

                 इतिहासकारों की माने तो जब 'होशंगशाह गोरी' ने गागरोन पर हमला किया था तब 'बूंदी के राजपूतों' ने भी गोरी का साथ दिया था क्यूंकि इन राजपूत राजाओं की गागरोन के चौहानो से नहीं बनती थी। पर गागरोन किला इतना विशाल था के किले के अंदर घुसना मुमकिन नहीं था। किले में खाने - पिने की भी सभी सुविधाए मौजूद थी। युद्ध की आग में जल रहे सुल्तान गोरी ने तरकीब लगाई और जिन नदियों का पानी किले में जाता था उनमें पशुओं को खासकर गायों को काट कर डाल दिया जिससे सुन्दर नदियाँ खून से लतपत होगई। गागरोन किले में रहने वाले हिन्दू थे इसलिए अब वह यह पानी पि नहीं सकते थे। अंत में अचलदास खींची ने गागरोन के द्वार खोले और गोरी से युद्ध करने रणभूमि में पहुंच गए इसमें सभी पुरुषों की मृत्यु हो गई और आत्मरक्षा के लिए गागरोन किले के अंदर '16000 महिलाओं' ने जौहर कर लिया। हालाँकि पास के ग्रामीण बताते हैं के सुल्तान को हरा कर युद्ध खीचियों ने जीता था पर युद्ध में जित होने पर जो झंडा लहराकर जित और हार की सुचना किले तक रणभूमि से दी जाती है उसमे किसीने खीचियों की जगह गलती से दुश्मनी सेना का झंडा लहरा दिया, जिससे किले में मौजूद महिलाओं को लगा के हमारी हार हुई है और उन्होंने जौहर करलिया। जब जित कर लौटे खीचियों ने जलती चिता में सब कुछ ख़त्म होता पाया तब उन्होंने निराश होकर गागरोन का त्याग करदिया। और कसम खाई के जिस किले में उनका सबकुछ ख़त्म हुआ है वे अब वहाँ कभी पैर भी नहीं रखेंगे।


                ग्रामीणों के मुताबिक वह सभी पुरुष गागरोन छोड़ गए और भारत के अलग - अलग क्षेत्रों में बस गए। खींची चौहानो के वंशज आज भी मौजूद हैं। मध्य प्रदेश के मुख़्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन्ही में से एक है। युद्ध कौन जीता कौन हारा ? इसपर आज भी ग्रामीणों और इतिहासकारों की नहीं बनती। पर सबसे बेचैन करने वाली बात तो यह है के सुलतान का साथ कुछ राजपूत राजाओं ने दिया और बड़ी संख्या में गौ हत्याओं को होने दिया। हिन्दू ही हिन्दू के विरोधी बने और गागरोन वीरान हो गया।

 

                गागरोन बेहद मजबूत और इतिहास का एक नायाब किला है पर इतना विशालकाय होने के बाद भी अचानक इसका इस तरह वीरान हो जाना अचम्भा करता है। गागरोन पर बादमे कई राजाओं का शासन हुआ जिनमें मराठा भी शामिल थे। फिर भी गागरोन उस तरह कभी बस नहीं पाया जिस तरह वह खीचियों के दौर में था। यहाँ तड़पती हुई मौते हुई इसलिए कुछ लोग इसे शापित किला मानने लगे। और उनके अनुसार जब तक सारे चौहान जो अब बिखर चुके हैं वह आकर एक साथ इस किले के गेट पर अपने पूर्वजों का पिंड दान नहीं करेंगे तब तक ना तो कोई चौहान इस किले के अंदर जा सकता है ना ही यह किला दुबारा शाप मुक्त हो सकता है। 

                 इस कहानी से लगता है मानो चौहानो का नया वंश और गागरोन का विशाल किला आपस में मदभेद कर रहे हैं। शायद ऐसा इसलिए क्यूंकि ग्रामीणों के अनुसार खींची पुरुषों ने गागरोन का त्याग किया था और मुड़ कर ना देखने की प्रतिज्ञा ली थी।


                कई राजा आए , कई राजा छोड़ गए ! कई वीरांगनाए सती हुई , कई वंश इतर - बितर हुए ! सदियाँ बीत गई पर गागरोन आज भी वहीं उस बीहड़ में डटा खड़ा है अपने वंशजों की राह देखता हुआ एक टक लगाए बैठा है। हम नई दौड़ में लगे हुए है और हमारा इतिहास हमें पुकार रहा है इस आस में के हम उसे बंद पन्नों में कैद होने से शायद रोक लेंगे और उसका परचम दुबारा लहराएँगे !!!


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