AJINKYA - MURUD JANJIRA !!!
"सागर ! विशाल अरब सागर" !! विशाल गहरे सागर के बीचों - बीच बना एक 'किला' !!! इस किले को ना कभी कोई जीत पाया , ना ही कभी उसको नुकसान पहुँचा पाया !!! अब गज़ब तो यह है के अरब सागर के बीचमें किला कैसे बना ? किसने बनाया ? और क्यों बनाया ???
'महाराष्ट्र' के 'कोंकण' क्षेत्र में 'मुरुद गांव' बसता है उसी गांव के तट के पास सागर में यह "जंजीरा" किला मौजूद है। जंजीरा तक़रीबन 350 साल पुराना किला है। जंजीरा 'अरबी' शब्द 'जजीरा' का अपभ्रंश है , जिसका मतलब है 'टापू'। यह किला दरहसल एक टापू पर ही बनाया गया है, पर गौर से देखने से भी यह मालूम नहीं हो पाता के किला टापू पर है। विशाल जंजीरा ऐसा लगता है जैसे सागर की गोद से ही निकला हो।
भारत की भूमि पर कई राजा - महाराजाओं , मुग़लों और अंग्रेजों ने राज्य किया था। शायद ही कोई ऐसा किला रहा होगा जिसे यह राज्यकर्ता जित ना पाए होंगे। जंजीरा ऐसा ही महान किला रहा है इतिहास में जिसे मुग़ल , अंग्रेज और यहाँ तक की खुद 'शिवाजी महाराज' भी जीत नहीं पाए थे। इसलिए जंजीरा को मराठी शब्द "अजिंक्य" के नाम से आज पहचाना जाता है। अजिंक्य का मतलब जो कभी जीता नहीं जा सकता है। अजिंक्य का शाब्दिक अर्थ अजय भी है।
इस टापू पर किले की नीव पास के गांव में बसने वाले मछुआरों ने समुद्री लुटेरों से बचने के लिए रखी थी। "राम पाटिल" जो की मछुआरों के मुखिया थे इन्होंने 'अहमदनगर सल्तनत' "निज़ाम शाह" से इजाज़त लेकर इस टापू पर "मेधेकोट" नाम का "लकड़ियों" से किला बनाया था। जब मेधेकोट का गौरव बढ़ने लगा तब अहमदनगर सल्तनत के 'थानेदार' ने ही मछुआरों से किला खाली करने को कहा था। मछुआरों द्वारा विरोध होने पर अहमदनगर के 'सेनापति' "पीराम खान" एक व्यापारी के भेष में सैनिकों से भरे तीन विशाल जहाज़ लेकर पहुंचे और चुपके से आक्रमण कर कब्ज़ा कर बैठे। पीरम खान के बाद "बुरहान खान" अहमदनगर सल्तनत के नए सेनापति बने थे। इन्होंने मेधेकोट जो की लकड़ी का किला था उसे तुड़वाकर पत्थर का बनवाया था। यही विशाल पत्थर का किला आज भी अपने पूर्ण परचम को लहराते हुए खड़ा है। जंजीरा की नीव '15 वी शताब्दी' में रखी गई थी। बादमे '1617' में "सिद्दी अंबर" ने बादशाह से जंजीरा की 'जहागिरी' प्राप्त की थी तबसे इसे 'सिद्दियों का किला' भी कहा जाने लगा।
जंजीरा में बसने वाले सिद्दी 'अबीसीनिया' के थे , वे बहुत शूर थे और युद्ध कला में माहिर थे। यही कारण था के जंजीरा अजिंक्य बना रहा। "22 एकड़" में फैला जंजीरा को बनने में लगभग पुरे "22 वर्ष" लगे थे। जंजीरा समुद्री तल से "90 फिट" ऊँचा माना जाता है जिसकी नीव "20 फिट" गहरी है। जंजीरा की "22 सुरक्षा" चौकियाँ हैं। जंजीरा का निर्माण इस प्रकार किया गया है जैसे दुश्मनी सेना को इसका मुख्य द्वार दिखाई ही ना दे पाए और कोई भी किले पर हमला ना कर पाए। जंजीरा किले में "19 बुलंद बुर्ज" मौजूद हैं , जिनके बीच मुख्य द्वार है। हर दो बुर्ज के बीच "90 फुट" का अंतर माना जाता हैं। शायद यही कारण रहे होंगे के कोई भी दुश्मन दूर से देखने पर किले का प्रवेश द्वार नहीं ढूंढ पाया। और इन चौड़े बुर्जों को ऐसा बनाया गया है जैसे वह पुरे टापू को घेरे हुए है। किले में एक ख़ुफ़िया द्वार भी है जो 'समुद्र के अंदर' से पास के गांव मुरुद तक पहुंचता है ऐसा इतिहास में वर्णन मिलता है। आज यह पानी के अंदर का मार्ग मौजूद है या नही इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।
जंजीरा पर काफी बड़ी बस्ती हुआ करती थी। 'रसोई घर' , 'शाही दरबार' , 'मज्जिद' , '2 पानी के बड़े तालाब' (जो आज भी मौजूद है) हुआ करते थे। '3 बड़े मोहल्ले मौजूद' हुआ करते थे जिनमे 2 मुसलमानों के थे और 1 अन्य जातियों का था। किले के मध्यभाग में 'सुरलखाना' का भव्य बाड़ा हुआ करता था। किले की रक्षा हेतु सिद्दियों ने यहाँ "514 तोपें" रखी थी ताकि दूर से ही दुश्मन पर दागी जासके। इनमे से "कलालबांगड़ी" , "लांडाकासम" और "चावरी" यह तोपें आज भी जंजीरा पर देखने को मिलती है। कहा जाता है के जंजीरा 'पंच पीर पंजातन शाह बंड्या बाबा' के संरक्षण में है। बाबा का मकबरा आज भी किले में मौजूद है।
जंजीरा की सबसे बड़ी खास बात यह है के यह किला समुद्र की गोद में बैठा है। सिद्दियों ने जंजीरा का परचम इतना प्रसिद्द किया था के खुद शिवाजी महाराज इस किले को जितने के लिए पागल होगये थे। कई बार आक्रमण करने पर भी शिवाजी महाराज , संभाजी महाराज इसे जित ना पाए थे। आखिर में संभाजी महाराज ने जंजीरा के ही पास समुद्र में "पद्मदुर्ग" का निर्माण करवाया था और उसपर शासन किया। जंजीरा के पास पद्मदुर्ग में रहते हुए भी वह जंजीरा जित ना पाए थे।
जंजीरा पर "20 सिद्दियों" ने सत्ता चलाई उसके बाद "सिद्दी मुहमद खान" जंजीरा के आखरी सत्ताधारी सिद्दी बने थे। "सन 1948" को जंजीरा 'भारतीय संघराज्य' में विलीन हुआ था। जब तक यहाँ सिद्दी राजशाही रही तब तक यहाँ बस्ती मौजूद रही थी। बादमे धीरे-धीरे यहाँ के लोग राजशाही ख़त्म होने पर किला छोड़ 'मुरुद' पर जाकर बसने लगे। माना जाता है किले पर बसने वाले लोगों के घरों में कई प्रकार की लकड़ियाँ लगी हुई थी। जब वह किला छोड़कर जाने लगे तब इन लकड़ियों को भी याद के तौर पर साथ ले गए। मुरुद गांव में बसने वाले ज्यादातर लोग पहले जंजीरा के ही निवासी हुआ करते थे। यानी आज भी जंजीरा पर बसने वाले लोगों के वंशज मुरुद गांव में बस्ते हैं।
इतना विशाल किला , इतनी अद्भुत रचना , इतना प्राचीन इतिहास आज वीरान हो गया है। किले की बस्ती को उजड़े ज्यादा से ज्यादा '40 साल' हुए हैं फिर भी इसकी देखभाल ना होने के कारन जंजीरा अपना अस्तित्व खोता हुआ खंडार सा होगया है। हाँ ! किले की दीवारें आज भी बिना नुक्सान के खड़ी हैं, पर किले के अंदर का हिस्सा बिखरगया है। उन मछुआरों और सिद्दियों ने क्या नायाब किला बनाया था जिसे कोई नहीं जित पाया। लेकिन वक़्त और हमारी लापरवाही ने इस नायब जंजीरा को सुनसान बनाकर रख दिया है। आसान है ना कुछ पढ़ना , समझना , जानना ? पर क्या कभी इन जैसे विशाल लेकिन बंद होचुके इतिहास को दुबरा खोलने का प्रयास किया है ? कभी इन जगहों पर जाकर दुबारा उस भूमि के इतिहास को जीने का प्रयास किया है ? जंजीरा भारत भूमि में तो समा गया पर रोज़गार ना होने के कारन धीरे - धीरे सुना होता चला गया। और इसी सूनेपन ने मानों जंजीरा के बाहरी शरीर को तो जैसे - तैसे मजबूती से खड़ा रखा , लेकिन ना चाहते हुए भी अंदर का दिल कहीं सूनेपन के कारन रोता - बिलखता बिख़र गया।
जंजीरा आज भी अपने अस्तित्व को संभाले हुए सागर की गोद में इस उम्मीद से डटा हुआ है के काश कोई उसपर फिर आकर बसेगा !!! नई चीजें तो बहुत देखते हैं , कुछ वक्त इन महान किलों के लिए निकलना जरुरी नहीं ? अपने इतिहास को करीब से देखकर उसकी रूह को पहचानना जरुरी नहीं ???
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Your perspective is refreshing 💙 Miss.Twinkle Sharma ✨👌
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