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GOPAL JI - JO BANE "SAKSHI" !!

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                    'ओडिशा' के 'पूरी शहर' से '16 किलोमीटर' दूर स्थित एक 'मध्यकालीन युग' का मंदिर है जो "श्री कृष्ण और राधा" को समर्पित है। इस मंदिर की स्थापना के पीछे छिपी एक रोचक और भक्ति से पूर्ण कहानी सुनने और समझने को मिलती है। हम यहाँ इस मंदिर के बंद पन्नो में कैद इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे।                    पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार श्री कृष्ण के पड़पोते 'वज्र' ने कृष्ण की '16 मूर्तियाँ' एक ख़ास तरह के पथ्तर पर बनवाई थीं और इन सभी मूर्तियों को उन्होंने कृष्ण की याद में 'मथुरा' और उसके आस - पास के इलाको में स्थापित करवाई थी। इन मूर्तियों के नाम - "श्री हरिदेव ( गोवर्धन ) , श्री केशव देव ( मथुरा ) , श्री बलदेव ( बलदेओ ) , गोवर्धन जी ( वृन्दावन ) ,श्री नाथजी और गोपीनाथ जी ( जो पहले गोवर्धन पर थे अब राजस्थान में स्थित हैं ) , मदन मोहन और साक्षी गोपाल ( जो पहले वृन्दावन में थे ) , और बाकि ब्रज मंडल के 4 श्री कृष्ण थे"। इनमेसे गोपाल जी जो वृन्दावन में थे वह अब ...

ROHA JAGIR !

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                              " रोहा किला" जिसकी नीव 'सन 1510' के पास रखी गई थी जब 'कच्छ' के "राजा खेंगराजजी १स्ट" के छोटे भाई "साहेबजी" को '52 गाँवो' की जागीर दी गई थी। इस जागीर में राज्य करने वाले परिवार के वंशज "ठाकुर पुष्पेंदर सिंह" जो आज भुज में रहते हैं वह बताते हैं के साहेबजी के पोते "देवाजी" को "माता आशापुरा" ने सपने में दर्शन दिए और कुए से उनकी मूर्ति निकाल स्थापित करने का निर्देश दिया। तब देवाजी ने माता के कहे अनुसार मूर्ति निकाल कर मंदिर निर्माण कराया और उनकी स्थापना की और तभी देवाजी को उसी जगह किला निर्माण कराने का ख्याल आया फिर '1530' में किले का निर्माण शुरू हुआ। ठाकुर पुष्पेंद्र जी बताते हैं के रोहा जागीर में करीब 17 ,18 पीढ़ियों ने अपना जीवन-यापन किया है।                     रोहा किले का निर्माण वक़्त और जरुरत अनुसार कराया गया था। पहले बिच का हिस्सा बना फिर उसे संरक्षित करती दिवार को बनवाया गया। बादमे आबाद...