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RUKMINI - Vidarbha Rajkumari

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                  द्वापर युग में 'विदर्भ' के "भोजवंशी राजा भीष्मक" थे जिनकी राजधानी 'कुंडिनपुर नगरी' थी। राजा  भीष्मक अपने अस्त्रकौशल के बल पर बैशिक देशो पर आधिपत्य करने में समर्थ थे। राजा भीष्मक "मगधराज जरासंघ" के ख़ास मित्र थे। राजा भीष्मक के ५ पुत्र- "रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस, रुक्ममाली" थे। और १ पुत्री "राजकुमारी रुक्मिणी" थीं।                  राजकुमारी रुक्मिणी का जन्म 'वैशाख एकादशी' को हुआ था। राजकुमारी के जन्म के बाद से विदर्भ का वैभव कई गुना बढ़ने लगा। प्रजा राजकुमारी को 'लक्ष्मी स्वरुप' मानती थी। कई पौराणिक साहित्यो में उन्हें लक्ष्मी अवतार भी माना गया है। द्वापर युग में "श्री कृष्ण" का भी जन्म हुआ था जिन्हें लोग 'विष्णु का अवतार' मानते थे। कृष्ण ने "द्वारका" नामक नगरी को बहुत कम समय में परिश्रम कर बसाया था। श्री कृष्ण के चर्चे हर तरफ होते थे। ऋषि-मुनि, ज्ञानी जन जहाँ भी जाते उनके गुणगान गाते थे।                  ब...

RANI RUDABAI - EK VIRANGANA..

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            15 वी शताब्दी का वो दौर था, हर तरफ तप्ति बंजर धरती और पिने को पानी की एक-एक बून्द की तड़प गुजरात के हर इंसान को झंझोड़ कर रख देती थी। ना तो इंद्र का आशीर्वाद,नाही कुदरत का रहम गुजरात वासियो को प्राप्त था। हर तरफ एक अनकही सी खामोशी और पानी की एक झलक को तड़पती आँखे थी।             अहमदावाद के पास 'अडालज' नाम एक गाँव है जो की प्राचीन काल में 'दांडई देश' के नाम से जाना जाता था। वहाँ के शासक "राजा वीरसिंह वाघेला"अपनी प्रजा के हित का बेहद ख़याल रखते थे। उन्होंने "अडालज वाव"  (बावड़ी) का निर्माण कराने का फैसला लिया ताकि प्रजा को पानी की कमी से बचाया जा सके। पर दुर्भाग्य था राजा साहब का, एक दिन "महमूद बेगड़ा" जो की मुस्लिम शासक थे उन्होंने राजा वीरसिंह के राज्य पर हमला किया जिसमे राजा वीरसिंह वीरगति को प्राप्त हुए। अब अडालज पर महमूद बेगड़ा की सल्तनत स्थापित हुई।             राजा वीरसिंह वाघेला की "रानी रुदाबाई" खूबसूरती की अद्भुत मिसाल थीं,  और इसी कारन वो मेहमू...

MEERA KA EK TARFA PREM....

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            याद आज '1498' की करते है,'मेरता' शासक 'राव दूदा जी' के राजघराने में जन्म जब एक खूबसूरत राजकुमारी ने लिया। दादा दूदा जी ने नाम उनको 'मीरा' दिया,जिसका अर्थ स्वच्छ और तृप्त जलकुंड था। दिखने में वो खूबसूरत जैसे चाँद,बोली जैसे माँ सरस्वती खुद हो गले में विराजमान।            जब भजन गाती मीरा तो मानो खुद स्वर्ग से देवता उन्हें सुनने के लिए मेरता की धरती पर उतरते हों।   जात-पात की जिसे कदर नहीं थी,वही मीरा दादाजी के छोटे बेटे 'रतन सिंह' की बेटी थी। पड़ोस में शादी देख एक दिन मीरा अपनी माँ 'वीर कुमारी' से पूछ बैठी- "माँ मेरा दूल्हा कौन है? विवाह कहाँ होगा मेरा?" माँ ने मीरा का हटी स्वभाव उस दिन जाना जब अपने दूल्हे के बारेमें जानने के लिए मीरा बार-बार एक ही सवाल दोहराने लगी। माँ ने आखिर में तंग आकर श्री कृष्ण मूर्ति की ओर इशारा कर मीरा को उनका पति बता दिया। उस दिन से मीरा तो मानो सुध-बुध खो केवल कृष्ण के ही साथ रहने लगी जैसे अपना सबकुछ मीरा ने कृष्ण को ही समर्पित कर दिया हो।   ...