MEERA KA EK TARFA PREM....
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याद आज '1498' की करते है,'मेरता' शासक 'राव दूदा जी' के राजघराने में जन्म जब एक खूबसूरत राजकुमारी ने लिया। दादा दूदा जी ने नाम उनको 'मीरा' दिया,जिसका अर्थ स्वच्छ और तृप्त जलकुंड था। दिखने में वो खूबसूरत जैसे चाँद,बोली जैसे माँ सरस्वती खुद हो गले में विराजमान। जब भजन गाती मीरा तो मानो खुद स्वर्ग से देवता उन्हें सुनने के लिए मेरता की धरती पर उतरते हों। जात-पात की जिसे कदर नहीं थी,वही मीरा दादाजी के छोटे बेटे 'रतन सिंह' की बेटी थी। पड़ोस में शादी देख एक दिन मीरा अपनी माँ 'वीर कुमारी' से पूछ बैठी- "माँ मेरा दूल्हा कौन है? विवाह कहाँ होगा मेरा?" माँ ने मीरा का हटी स्वभाव उस दिन जाना जब अपने दूल्हे के बारेमें जानने के लिए मीरा बार-बार एक ही सवाल दोहराने लगी। माँ ने आखिर में तंग आकर श्री कृष्ण मूर्ति की ओर इशारा कर मीरा को उनका पति बता दिया। उस दिन से मीरा तो मानो सुध-बुध खो केवल कृष्ण के ही साथ रहने लगी जैसे अपना सबकुछ मीरा ने कृष्ण को ही समर्पित कर दिया हो। ...